खाना खाने एवं बनाने के उपकरणों के बारे में...हमारी नीति
बिना कुछ खाए मनुष्य नहीं जी सकता।
खाना मानव जीवन एवं स्वास्थ्य का स्रोत है।
और, जो भोजन मनुष्य खाता है वह सब प्रकृति की देन है।
भोजन को किस प्रकार पकाया जाए कि वह स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो, इसके लिए मनुष्य ने हज़ारों वर्ष बिताए हैं और प्रत्येक भोजन से सीख ली है।
और, अब भी, जो व्यक्ति दिन प्रति दिन खाना पकाने में शामिल हैं, वह विभिन्न भोजनों से और ज़्यादा एवं और स्वस्थ व्यंजन बनाने के तरीकों को सीखना जारी रखता है।
पृथ्वी पर रहने वाले अनगिनत जीवित प्राणियों में से मनुष्य भी एक है।
परंतु मनुष्य के पास उत्कृष्ट क्षमता होती है जो दूसरों से बेहतर होती है, जैसे आंखों से देखकर पुष्टि करना, कानों से सुनकर पुष्टि करना, प्रत्यक्ष रूप से छूकर पुष्टि करना, सूंघकर पुष्टि करना, जीभ से चखकर पुष्टि करना, और फिर जो भी उसने सीखा या बनाया है उसका उपयोग करना।
परंतु अब, “सुविधाजनक/सरल/आरामदायक” होना प्रत्येक क्षेत्र में अच्छा माना जाता है, इस कारण कई लोग स्वयं के अंदर की आंतरिक क्षमता या प्रतिभा का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
संसाधित भोजन ने बेशक मनुष्य को समय प्रदान किया है।
परंतु, जितना “अधिक सुविधाजनक/सरल/अधिक आरामदायक”, होता है, मनुष्य की आंतरिक क्षमता, जो उसके पास एक जीवित प्राणी के रूप में होती है, वह विकृत होती जाती है।
ऐसे समय में, हम हमेशा यह सोचना जारी रखते हैं कि “भोजन” अथवा “जीवन एवं स्वास्थ्य” और “सही भोजन पकाना” कैसा होना चाहिए, और हमेशा यह सोचना जारी रखते हैं कि ऐसा करने के लिए खाना पकाने के कैसे उपकरण होने चाहिए।
उत्थान होने वाला “देश, क्षेत्र, परिवार”, यह सभी बातें अलग होती हैं और व्यक्ति पर निर्भर करती हैं, इसलिए “व्यंजन/स्वाद” जो कि व्यक्ति महसूस करता है, वह भी अलग होता है और व्यक्ति पर निर्भर करता है।
कई लोग केवल एक स्वाद से ही परिचित होते हैं, खाना पकाने के लिए यह मूल बिंदु नहीं होनी चाहिए। जितने अधिक परिवार, जितने अधिक प्रकार के व्यंजन, जितने अधिक प्रचलन, एवं जितने अधिक लोग, उतने ही अधिक वांछित स्वाद। वास्तविक रूप से यह आंकड़ा होना चाहिए, होना चाहिए या नहीं?
हम प्रत्येक परिवार में इस बात का ध्यान सामान्य रूप से साकार करवाना चाहते हैं। और, इसके लिए हमने निर्णय लिया है कि हम “खाना पकाने के उपकरण” बनाना जारी रखेंगे।